...

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वक्त , वक्त आने पर बदल ही जाता है
कुछ लोग आज भी संशय मे ही जीते है
कहते है इंसान बदल जाते है पर,

वक्त भी बदलता है भाई
आज जो भी व्यक्ति धरती पे जी रहा है
आज का वक्त अर्थ का वक्त है
बिना इसके
न कोई रिश्ते है और
न नाते है
न प्रेम है, न
अनुराग है ।
फिर जो मनुष्य अर्थ की अवहेलना करे
उसे मूर्ख न कहेंगे तो क्या कहेगे ??
पैसे के बिना जीना अति कष्टकर है जीवन
मूर्ख से मूर्ख इंसान भी समझता है
पर जो समझकर भी न समझे
उसे कौन समझाए
सभी बुद्धि मान कहते है मुझसे
भाई, गुरू बना लो
बिना गुरु ज्ञान नही होता
बात तो सौ प्रतिशत सही है
पर....
कोई मुझे गुरु की परिभाषा बता दे
सच मानो..
मै कही गुरु ढुढने नही जाउंगा
झट उसके कदमो मे गिरकर
अनुनय करूँगा
महानुभाव..
आपको ही मै अपना गुरु मानता हूँ आज से
सारे कर्म कुकर्म छोडता हूँ आज से
आपको बस इतना करना होगा
मुझे वो गुरुवत्व के दर्शन करा दो जो
आदिकाल के गुरुओं की चरित्र मे थे
उनके आचरण मे थे
गुरु वशिष्ठ, गुरु वाल्मीकि, द्रोणाचार्य
अपनी अपनी कुटिया मे शिक्षा देते थे
वो अपने गुरु कूल की शाखाएँ नही खोल रखी थी
सभी राजाओं के बालक
वही शिक्षा ग्रहण करते थै
उपचार भी वही होते थे
बदले मे वो राजाओं से
अर्थ की कामना या मांग नही करते थे
शिष्य भिक्षाटन पर निर्भर थे
और गुरु भी
उनके पास विलासिता की कुछ वस्तु नही थे
कोई कहे...
है ऐसे गुरु इन दिनों ??
मै भी मानता हूँ
आधुनिक युग मे बहुत सी ऐसी चीजे है
जिनके बिना जीवन नही चल सकता
फिर तो मै और गुरु एक ही पलडे पर है??
वो भी अर्थ को बढाने के चक्कर मे
राम को भूले बैठे है, और मै भी
दाम के चक्कर मे राम को भूला बैठा हूँ
लाईक और शेयर और फालोवर
देखकर मन मेरा भी खिलता है
वो भी हर्षित होते है
( ये मै किसी व्यक्ति विशेष के दिल खो आघात
पहुंचाने के लिए नही लिखा, मात्र अपनी तुच्छ
विवेक से जितना समझा है वही लिखा है )