कान्हा गर राधा के हो जाते
प्रेम त्याग का पाठ तो हमने,
खूब पढ़ा है राधा का,
निःस्वार्थ भाव का प्रेम तो समझो,
जीना आधा और मरना आधा सा।
स्त्री होकर भी मर्यादा लांघी,
प्रेम में सर्वस्व दे दिया राधा ने,
क्या पाया सब खो ये वो ही जाने,
गजब का प्रेम किया था राधा ने।
पर बात आज करें क्या भाव थे,
मन में उस सर्वज्ञ मुरारी के,
क्या मनोदशा पढ़ भी चुप थे,
क्या विचार थे उस बाँके बिहारी के।
रुक्मिणी संग ब्याह रचा स्वयं,
वैवाहिक जीवन मे रम गए कान्हा,
तड़प, वियोग और प्रेम की चक्की,
पीस रही बेचारी राधा तन्हा।
गर्म दूध पी कृष्ण ने जलाए,
फफोले आये राधा के तन को,
रुक्मिणी को धोखा दिया कन्हैया,
राधा को देकर अपने मन को।
क्या राधा से प्रेम न था उस,
सृष्टि रचैया के मन में,...