ज़िंदगी
कभी फूल की महक जैसी आती हैं
कभी बनके इंद्रधनुष रंग कहीं दिखलाती है
अपनों को अनजान कभी...कभी गैरों को अपना बनती है
ये ज़िन्दगी है कभी हसाती तो कभी रुला देती है
कागज की नाव जैसी उतरी सांझ में गाव जैसी
टहरी धूप में छाव जैसी
ये...
कभी बनके इंद्रधनुष रंग कहीं दिखलाती है
अपनों को अनजान कभी...कभी गैरों को अपना बनती है
ये ज़िन्दगी है कभी हसाती तो कभी रुला देती है
कागज की नाव जैसी उतरी सांझ में गाव जैसी
टहरी धूप में छाव जैसी
ये...