...

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लक्ष्य
जीवन का हर एक क्षण,
प्रतिद्वंदी जिसमें जीवन रण।
कर दे विशुद्ध हर सपने को,
जो ठान लिया पाने का प्रण।।१।।

फिर धरती क्या?और अम्बर क्या?
अंतरिक्ष पार कर जाना है।
भर के ख़ुद में हुँकार प्रबल,
लक्ष्य ही आहार बनाना है।।२।।

उठा लिया जो तिनका हाथों में,
बन जायेगा वो ही ब्रह्मास्त्र सहज।
बस लक्ष्य भेदन ही लक्ष्य रहेगा,
जब पाने का करतब हो अचरज।।३।।

क्या कहते हो मिट जाऊंगा?
ये नाम अमर कर जाऊंगा।
तुम्हें क्या?आने वाली संतति को भी,
कुछ यूं ही प्रखर कर जाऊंगा।।४।।

सारी दुनिया दुश्मन हो,
पर मन कंपित कर ना पायेगी।
श्रम का ब्रह्मास्त्र छोड़कर,
ये दुश्मनी मिटायी जायेगी।।५।।

लक्ष्य तो एक बहाना है,
बस तुम्हें मौन करवाना है।
उठो बांध लो पेटी अपनी
तुमको अब सर्वत्र मौन हो जाना है।।६।।
© A.k.mirzapuri