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❣️....."संगम दिलों का".....❣️

कर के दरकिनार लबों की नीरवता, कि- आज मेरी आँखों में प्रेम गढ़ ले।
मैं हो जाना चाहती हूँ तुझसी प्रिय, कि- आ मुझे अपनी रूह में मढ़ ले।।


बन जाऊँ मैं ग़ज़ल तेरे हर्फ़ों की, और तुझे मैं अपना ज़ीस्त-ए-सुकूँ क़रार दूँ।
तू मुझमें समाया है आयत की तरह, कि- तू भी मुझे क़ुरआन सा पढ़ ले।।

ज़ुस्तजू-ए-क़ल्ब है साथिया सुन...तू शामिल हो रूह में मैं तेरी काया बनूँ।
गुफ़्तगू न भी हो दरम्यां ग़र हमारे, मन के एहसासों में मुझे तू जकड़ ले।।

नूर-ए-चश्म बन कर सज जा हिजाब तले और संगम दिलों का हो जाये।
समेट ले मुझे ख़ुद में ही यूँ, कि- दिल से निकलने की हर राह सुकड़ ले।।

हो कर फ़ना ज़र्रा ज़र्रा, पाकीज़गी-ए-मोहब्बत तेरे नाम करती है शैफाली।
हो जाने को दो जिस्म एक जान, कि- आ क़दम-दर-क़दम साथ बढ़ ले।।
shaifali....✒️