...

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घटोत्कच
लड़ा था अपने पूरे बल से
पर किसके लिए?!
उन लोगों के लिए
जिनने नाता तोड़ा खुद के बेटे के साथ।

जब राज्य और संपत्ति थी, तब तो याद नही आया उस बेटे का।
ना दिया स्थान या खुद का सम्मान।

महराज तो धर्मराज युधिष्ठिर था।
पर पुत्र समान के साथ ही कर बैठे अधर्म और अन्याय।

बुलाया तो था धर्म युद्ध कह कर।
पर बलि चढ़ाया गया धर्म और भतीजे दोनों का।

वो महायुद्ध तो मानवोंका था।
ना उनका था ना उनके बेटों का।

फिर भी कूद गए उस मृत्य कूप में।
सिर्फ पितृ वाक्य परिपालन केलिए।

कुरुक्षेत्र में थो भरे पड़े थे महारथियों का समूह।
पर पशुपतास्त्र भी मौन खड़ा, कर्ण के अस्त्र प्रहारों से।

उस बाण पे तो लिखा था अर्जुन का नाम,
पर चाचा का नाम मिटाकर खुद का लिख दिया उसने।

मरते दम पर भी एक अक्षोहिनी सैन्य कुचलकर मारा था उस महाशय ने

दानव के रूप में तो आया था।
लेकिन अंत्यतः महामानव के रूप मे चला गया।

वही था हिडिंबा पुत्र घटोत्कच...

© ಚೈತನ್ಯ

If there's any grammatical errors then my apologies..🙏
thank you for reading..❤️