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rup rahasya
◆इक साया सा,मेरी
ज़िन्दगी मे आया था,
कूछ बोला नहीं,मगर
बहुत कूछ जताया था◆
(1)
गली-गली भटका में,मगर
नगर ना रास आया था,
डगर-डगर चला में
कदम-कदम पर
धोखा खाया था,
(2)
चलता चला,तब
कुछ सफर रचाया था,
गिना करता कांटों को
एक गुलाब ना नज़र आया था
(3)
भोर हो चली जब
रवि नभ पर छाया था,
कोकीला ने कलरव कर
मृदूल गित गाया था,
मन संताप से उभर आया था,
जीवन में नया मोड़ पाया था,
(4)
कदम दर कदम
संग में वो आया था,
बन डगर पर साथी मेरा
कभी आगे,कभी पीछे
नज़र आया था,
देख ना सका में मगर
पर्दा जो बना आया था
मगर क्या भानु(सूर्य) को
कभी पर्दा ढक पाया था,
◆इक साया सा,मेरी
ज़िन्दगी मे आया था,
कूछ बोला नहीं,मगर
बहुत कूछ जताया था◆
© divu
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