...

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दुनिया
मैं वह सुन रहा हूं जो दुनिया सुना रही है मुझे , गुस्सा तो मुझे अपनी खामोशी पर आता है । की जो मैं नहीं हूं वो बना रही है मुझे , अजीब से हालात है अब सब कुछ देख कर क्यों चुप हूं मैं । आवाज़ उठाऊ तो दुनिया वाले चिल्ला कर आवाज़ दबा देते है हमारी , सब एक ही भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे है कहीं । देखा जाए तो एक रेस है कहीं सबको , सबसे पहले पहुंचना है कहीं । मन में एक अशांति है कहीं की यह दुनिया कुचल ना दे हमें कहीं , पर दिल के किसी कोने से आवाज़ आती है कभी कभी । की ज़िंदा है अभी भी तेरी खुदारी कहीं तो फिर से चल और दुनिया को दिखा दे अभी ।