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जहाँ मुझे आना था
जहाँ मुझे आना था

देहरी पर एक दीया रख देना
संझवाती के समय कहा करती थी माई
याद है तब मैं बहुत छोटा था
और दीदी मुझसे बहुत बड़ी
उसे विश्वास था घर में आते हैं पितर
निवास करते हैं कुल देवता
इधर एक युग हुआ गाँव घर छोड़े
माँ पिता का भी साथ छूटा
पर यहाँ लौटता हूँ बार बार
इस बार सावनी पूजा में कोई घर सूना नहीं है
बरसों बाद लौटी है रौनक गहमागहमी है
कह रहे थे अपने टोले के एक बुजुर्ग रिश्ते में बाबा
ऐसा विरले ही होता है जब उमड़ आता हो पूरा गाँव
यह एक दैवीय संयोग है
फिर आशीष की मुद्रा में मेरे माथे पे हाथ रख
अपनी लाठी ठुकठुकाते सामने खेत की तरफ मुड़ गये
इस उम्र में भी गनीमत है आँख की रोशनी बची है
सुबह नंगे पाँव खेत और गाँव का एक चक्कर लगा लेते हैं
और जब भी सुनते हैं मेरा नाम कि मैं आया हूँ
मुझसे पहले खुद मिलने आ जाते हैं
नहीं पता ऐसा क्यों होता है मेरे साथ
घर की चौखट तक आते आते लगता है
यही वो जगह है जहाँ मुझे आना था
© daya shankar Sharan