khusiya
पता नहीं किसने लिखा
पर जिसने भी लिखा
कमाल का लिखा..
मुझे दहेज़ चाहिए
तुम लाना तीन चार ब्रीफ़केस
जिसमें भरे हो
तुम्हारे बचपन के खिलौने
बचपन के कपड़े
बचपने की यादें
मुझे तुम्हें जानना है
बहुत प्रारंभ से..
तुम लाना श्रृंगार के डिब्बे में बंद कर
अपनी स्वर्ण जैसी आभा
अपनी चांदी जैसी मुस्कुराहट
अपनी हीरे जैसी दृढ़ता..
तुम लाना अपने साथ
छोटे बड़े कई डिब्बे
जिसमें बंद हो
तुम्हारी नादानियाँ
तुम्हारी खामियां
तुम्हारा...
पर जिसने भी लिखा
कमाल का लिखा..
मुझे दहेज़ चाहिए
तुम लाना तीन चार ब्रीफ़केस
जिसमें भरे हो
तुम्हारे बचपन के खिलौने
बचपन के कपड़े
बचपने की यादें
मुझे तुम्हें जानना है
बहुत प्रारंभ से..
तुम लाना श्रृंगार के डिब्बे में बंद कर
अपनी स्वर्ण जैसी आभा
अपनी चांदी जैसी मुस्कुराहट
अपनी हीरे जैसी दृढ़ता..
तुम लाना अपने साथ
छोटे बड़े कई डिब्बे
जिसमें बंद हो
तुम्हारी नादानियाँ
तुम्हारी खामियां
तुम्हारा...