यमुना की सांझ ढल...
यमुना की सांझ ढल एक छाया, एक काया चल..धुन के प्रति सम्मोहन,
कैसे हरण हुआ
रात्रि के आरोह का आवरण ओढ़ बढ़ चली कुंज की ओर....
किंचित निहारती तनिक विवश समकक्ष
कान्हा,यह मंत्र है सर्वदा उचित तो नहीं
फिर वही लय, वही राग...कितने बंधन कितने आवेग...
नहीं राधे,
यह तंत्र है..
जो पार है वही वश में करने वाला सिद्ध प्रतीत होता है..अधिकार का...
कैसे हरण हुआ
रात्रि के आरोह का आवरण ओढ़ बढ़ चली कुंज की ओर....
किंचित निहारती तनिक विवश समकक्ष
कान्हा,यह मंत्र है सर्वदा उचित तो नहीं
फिर वही लय, वही राग...कितने बंधन कितने आवेग...
नहीं राधे,
यह तंत्र है..
जो पार है वही वश में करने वाला सिद्ध प्रतीत होता है..अधिकार का...