...

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बातें
माज़रत चाहता हूं कि कुछ बातें कह गया हूं मैं
वो बातिएं जो महफिलों में कहते नहीं है
वो बातें जो तन्हाई में याद करने पर दर्द होता है
वो बातें जिनसे अक्सर ये रिश्तों को डोर टूट जाती है
वो बातें कि जिन्हें कहने से खुद डरता हूं मैं

मगर क्या किया जाए??
उन रिश्तों का की को अब निभाएं नहीं जाते
वो रिश्ते की जो तुम्हे अंदर खोखला कर देते हैं
वो रिश्ते की जिसमे मुहब्बत नहीं अब
वो लोग की जिनसे अब दर लगने लगा है

इससे पहले कि ख़तम सब होजाए
ये बेहतर है कि बात सब हाेजाए
जो मिल्कर वाक़्त सबने गुज़ारा था
वो यादें तुम याद करोगे कैसे
अगर आज सब के सब अलग होजाएं

उलझनें हैं बहुत इं रिश्तों में
ये होते भी है किश्तों में
इन सबको तुम्हें कंधों पर ढोना पड़ता है
ना चाह के भी निभाना पड़ता है
© Shaikh