...

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प्यार के कुछ नये ढंग
प्यार की मेरी सभी शरारतें
तुम्हे अजीज है
ये तो हर बार तुमने कहा..
आज के स्वाद ही लजीज है...
फिर भी
वो दिन था स्पेशल...
यूँ तो फरवरी माह ही बसंत का होता है
जिसमे बुढों पर भी यौवन मुस्कुराता है
हवाओं मे प्रकृति न जाने..
कौन सी शराब घोल देती है
धडकनों मे उतरते ही..
मन मलंग हो जाता है
और....
जिसके पास तुम जैसी..
आत्मग्रहन करने वाली महबूब हो..
उस प्रीतम के ह्रदय की
कुलांचो का क्या कहना...
पूनम की आधी रात मे समंदर की
असीमित उछालो जैसा..
उछलता है
तो लिहाजा... मैने सोंचा..
आज तो विशेषो से भी विशेष..
बेला की मिठी सुगंधों से भी मिठी
शीतलता चांद की तरह
प्यार फाग की तरह..
रात मधुमास की तरह...
दुलारूंगा तुम्हें
यही सोचकर मैनै किस डे को
हिस्सों मे बांट दिया
तुम्हारे वजूद के सभी हिस्से
यूँ तो जुडे है एक दूजे से
पर आज मै उनहे बांट दूंगा पृथक पृथक
और दिन की बात अलग है
तब मै कहाँ समझ पाता हूँ कि
शूरू कहाँ से कर रहा हूँ...
नियमबद्ध कुछ भी नही करता..
कोई बताए मुझे...??
प्यार नियमबद्ध होता हे क्या....??
आज की बात और है....
आज का दिन विदेशियो का है
और सुना है विदेश मे सभी कार्य
नियमबद्ध होते है
सो मे भी उनकी रीति को
नियमबद्ध ही निभाऊंगा...
तो...