...

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मेरे कुछ सवाल हैं u से
हमारे बीच के फासलों ओर इतने सालो के साथ के बाद भी हमारी बेपनाह मोहब्बत को देख कर जिसने जो भी कहा मेरे बारे में मैंने सुन लिए u के समझने के बाद मुझे भी कोई फर्क नहीं पड़ा बस इसलिए कि मुझे हमेशा से बस इस बात से फर्क पड़ता है कि u क्या सोचते हो मेरे बारे में क्या कहते हो u को ही बस अपनी दुनिया मानती हूं
पर उस रोज़ तुम्हारी बातें सुन कर खुद के वजूद ओर सीरत पर शक सा होने लगा ऐसा लगा कि मानों वो जो लोग कहते हैं मेरे लिए वो सही ही तो कहते हैं क्या ग़लत कहते हैं जब तुमने भी कह दिया तो यही सच है!
पर.....
मुझे एक बात पूछनी थी u से पर पूंछ नहीं पाई
क्या u जानते नहीं थे मुझे पहले दिन से मेरी बातें हंसना- रोना, पसंद-नापसंद
तुम्हारा साथ तुमसे बेपनाह मोहब्बत
क्या नहीं जानते थे?

इतने साल तक कैसे u को मेरी असलियत पता नहीं लगी
क्या मैं कभी भी खरी नहीं उतरी u कि उम्मीदों पर ाइतने सालो के साथ में क्या कभी नहीं जान पाए u मुझे
क्या सच में कभी नहीं जान पाए ?

जवाब दोगे क्या कभी?

© काल्पनिक लड़की