...

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तेरा चेहरा उभरता है
आईना वो जा है जहाँ तेरा चेहरा उभरता है
तहे-दिल अपने गौर कर वहाँ मेरा चेहरा उभरता है

आगाज़े सफर से ही है इक खाका हद-ए-नज़र
धुंधला सा ए मंज़िले जाना तेरा चेहरा उभरता है

वैसे तो मैं बहुत कुछ भूल गया बिसर गया, मगर
मुद्दतों बाद भी जहन से तेरा चेहरा उभरता है

जो जीत कर ही मानता है और हारकर नहीं टूटता है
जमानों बाद भीड़ से ‘क़फ़स’ ऐसा चेहरा उभरता है

© 'क़फ़स'

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