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मृत्यु :एक त्यौहार
इस प्रकृति का विधान है है
या यम की पहचान है,
किसी के लिए वरदान है
या किसी के कर्मों का अन्जाम है??
जिसकी अपनी ना है कोई ऋतु
क्या होती है ये मृत्यु??
जीवन का ही अवतार है मृत्यु
बहती धारा की धार है मृत्यु
आत्मा को किसी अपने से(परमात्मा)
एक गहरा दीदार है मृत्यु।।
बिल्कुल एक कविता की ही भांति
इस जीवन की कविता का सार है मृत्यु
जन्म तो लिया मरने के लिए ही न
तब तो ये सारा संसार है मृत्यु।।
जिसको कोई भेद न पाए
ऐसी एक दीवार है मृत्यु
जिसका कोई न करता इन्तज़ार
ऐसी एक समाचार है मृत्यु।।
हर खुशियों पर वार है मृत्यु
जीवन से लड़ते हुए भी,
हर मोक्ष का द्वार है मृत्यु,
कौन कहता है बेकार है मृत्यु
प्रकृति की संतुलन का आधार है मृत्यु।।
जो ख्वाहिशें यहां जीवन में खत्म ही न होती
उन सभी का दरबार है मृत्यु,
जो क्षणिक जीवन की डोर को काट दे
ऐसी एक तलवार है मृत्यु।।
भूत, भविष्य और वर्तमान क्या
हर पल चलने वाली औजार है मृत्यु
अच्छा जीवन मिले या ना मिले,
निष्पक्ष रहने वाली,
हर जनमानस का अधिकार है मृत्यु।।
किसी को गर्वित कर देने वाली तो
किसी को करने वाली लाचार है मृत्यु,
किसी को लगता डर है बहुत तो कोई..
हो जाता ख़ुदा से मिलने की खुशी से पागल
कुछ तो नहीं,, बस अपना एक विचार है मृत्यु।।
हर दिन हर पल किसी न किसी को
जिसमें जाना है और जाना होगा
ऐसी पवित्र ग़र्त की आहार है मृत्यु,
जिस स्तम्भ को आज तक किसी ने न साधा
ऐसी ऊंची मीनार है मृत्यु।।
इस भौतिक लोक से ऊपर उठकर
उस आध्यात्मिक लोक का साक्षात्कार है मृत्यु,
हां है बहुत ही दर्दनाक शायद, पर,,,
ज़िन्दगी से बहुत परे एक बड़ी आकार है मृत्यु।।
होते हैं बहुत निर्भीक वे शूरवीर
जिनकी वाणी आश्वस्त हो कहती,
हां हमें स्वीकार है मृत्यु।।
हर व्यक्ति जिसके आगमन से खुश नहीं होता
हर वीर जिसे अपनाने से नहीं डरता
ऐसी एक त्यौहार है मृत्यु।।

© Princess cutie