...

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"पहचानो मुझको"!
खुश हूं मैं आज तो यह कहने दो
तुम आज तो मुझे ऐसा ही रहने दो
साया नहीं मैं इंसान हूं
बोज तले रखा एक जवाब हूं
किताब खोल कर तो देख लो
पुराना नहीं मैं नया हिसाब हूं
नए से प्यालो में वही पुरानी शराब हो
बंदिशें नहीं पर कर्तव्यों की चादर है
हटा कर तो देख लो तुम्हारे लिए एक ही सागर है
ओह !सागर का पानी तो खारा है तुम्हारे लिए तो प्यारी नदिया की धारा है
सागर तो शांत है पर उठते इसमें भी तूफान है
नदिया से तो फिर भी बच जाते हैं सागर के आगे तो हम टिक ना पाते हैं
जो सागर से खेले एक वही इंसान है नदिया से खेलना तो बच्चों के लिए भी आसान है

करते तो हो तुम अपनी मनमानी कहते हो फिर भी साथ है हम दीवानी
दीवानी नहीं मैं इबादत खाने का धर्म हूं
भगवान का बनाया मैं एक ही मरहम हूं
हंस कर देती हूं मैं सब को राहत तुम क्या करोगे मेरी चाहत!