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Mein mukhtasar hoon!
में मुख्तसर हूँ!
तू मत आ मेरे आँगन में।
खुश्बू नहीं रही फूलों में!
तू मत झांक अब गुलशन में।
मोसम-ऎ-ख़िज़ां की भेंट चढ़ गये!
वो पत्ते जो सूरज की तपिश को रोकते थे!
अब नहीं रही जगह कोई पेड़ों के आंचल में।
अब सारी सखावतें दिखती हैं !
इंटरनेट की दुनिया में!
तू मत कर तलाश उनको अब अपने आँगन में।
बीमार का इन्तिखाब भी होने लगा है !
धर्म की पहचान से!
अब तो अस्पताल भी हमारे फंस गये हैं !
साम्प्रदायिकता के दलदल में।।
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