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Ghazal 12: शहर भर से दिल लगाया फिर ये पाया...
शहर भर से दिल लगाया फिर ये पाया
ये दिल जब भी दुखा अपनों ने दुखाया
जब भी हारे, अपने से हारे, अपनों से हारे
फिर उनकी खुशी में अपना मातम मनाया
न्याय किया, ख़ुद को मौत की सज़ा सुनाई
गुनाह था के हमने किसी का दिल दुखाया
बिन बात की बात बनी और दिल पे लगी
छाती पीटी ख़ुद को ख़ुद का रोना सुनाया
इससे पहले के उसको अपना कहते हम
उसने पहल करी और हमको गैर बताया
शहर भर से दिल लगाया फिर ये पाया
ये दिल जब भी दुखा अपनों ने दुखाया
© Pooja Gaur
ये दिल जब भी दुखा अपनों ने दुखाया
जब भी हारे, अपने से हारे, अपनों से हारे
फिर उनकी खुशी में अपना मातम मनाया
न्याय किया, ख़ुद को मौत की सज़ा सुनाई
गुनाह था के हमने किसी का दिल दुखाया
बिन बात की बात बनी और दिल पे लगी
छाती पीटी ख़ुद को ख़ुद का रोना सुनाया
इससे पहले के उसको अपना कहते हम
उसने पहल करी और हमको गैर बताया
शहर भर से दिल लगाया फिर ये पाया
ये दिल जब भी दुखा अपनों ने दुखाया
© Pooja Gaur
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