...

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क्या कहा...?
क्या कहा ? तुम एक एहसान गिनाने आए हो
बेजान बुतो को सच्चाअरमान सुनाने आए हो...

तुम भी कुछ कमाल करते हो ,इस जमाने में
गूँगे बहरो को हक़ीकी दास्तान बताने आए हो..

बताना चाहते हो दौर-ए-गुजश्ता नज़र-ए-बद
क्या तुम अब इनका इंसाफ आजमाने आए हो...

यहाँ सब है मतलबपरस्त ऐ दोस्त मेरे हमसफर
तुम क्यूँ बेवजह अब मुझे यकीं दिलाने आए हो...

एक चराग़ जलाया था जो फड़फड़ाके बुझ गया
दबी दबी -सी राख़ कि चिंगारी जलाने आए हो...

© N...sayyed✍️