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ग़ज़ल
राधा राणा की कलम से ...✍️

अजनबी बनकर रहे हम ज़िंदगी भर
बात तक ना की कभी खुद से घड़ी भर

इश्क के प्रदेश से इतनी गुजारिश,
चाहिए दिल के शहर में झोपड़ी भर।

दूर करने को अंधेरा ज़िंदगी का,
चाहिए हमको उजाला कोठरी भर।

मुट्ठियां भरके मिली खुशियां हैं हमको,
ग़म मिले हमको हमारे टोकरी भर।

की नहीं हमसे मुहब्बत ज़िंदगी ने,
ज़िंदगी ने भी निभाई दोस्ती भर।
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