30 views
ग़ज़ल
राधा राणा की कलम से ...✍️
अजनबी बनकर रहे हम ज़िंदगी भर
बात तक ना की कभी खुद से घड़ी भर
इश्क के प्रदेश से इतनी गुजारिश,
चाहिए दिल के शहर में झोपड़ी भर।
दूर करने को अंधेरा ज़िंदगी का,
चाहिए हमको उजाला कोठरी भर।
मुट्ठियां भरके मिली खुशियां हैं हमको,
ग़म मिले हमको हमारे टोकरी भर।
की नहीं हमसे मुहब्बत ज़िंदगी ने,
ज़िंदगी ने भी निभाई दोस्ती भर।
2122 2122 2122
अजनबी बनकर रहे हम ज़िंदगी भर
बात तक ना की कभी खुद से घड़ी भर
इश्क के प्रदेश से इतनी गुजारिश,
चाहिए दिल के शहर में झोपड़ी भर।
दूर करने को अंधेरा ज़िंदगी का,
चाहिए हमको उजाला कोठरी भर।
मुट्ठियां भरके मिली खुशियां हैं हमको,
ग़म मिले हमको हमारे टोकरी भर।
की नहीं हमसे मुहब्बत ज़िंदगी ने,
ज़िंदगी ने भी निभाई दोस्ती भर।
2122 2122 2122
Related Stories
61 Likes
25
Comments
61 Likes
25
Comments