...

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बाहों में ना सही, पर यादों में रहना। मीत बनकर नहीं, तो गीत बनकर रहना।
बाहों में ना सही,
पर यादों में रहना।

मीत बनकर नहीं,
तो गीत बनकर रहना।

नज़रों में ना सही,
पर आंखों में रहना।

लफ़्ज़ों में नहीं,
तो बातों में रहना।

फरियादों में ना सही,
पर दुआओं में रहना।

आवाज़ में नहीं,
तो अंदाज़ में रहना।

जिंदगी में ना सही,
पर जनाजे में रहना।

आशिकी में नहीं,
तो शायरी में रहना।

बाहों में ना सही,
पर यादों में रहना।

मीत बनकर नहीं,
तो गीत बनकर रहना।