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कविता : "कामयाबी"
सूरज देखो उग रहा है
आंखो में ये स्वपन गली के लेकर ।
क्या है ये संसार हमारा
जहां किसी का कोई नहीं
कैसा ये संसार हमारा।।।
यहां सब लोगो का दिखावा है
इस संसार में कोई किसी का ना होता है।।
सबकी मोह-माया में पड़कर
हमने खुद को खोया है।।
इस संसार में वही कामयाब हुआ
जिसने लोगो को छोड़ खुद को पाया है।।
किसी से कोई
ना मतलब रखा
ना किसी से कुछ कहा
खुद सुना खुद रहा
वही ज़िन्दगी में कामयाब रहा ।।।।
~ ~ ~{ निकिता यादव .}
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