...

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तेरा ज़िक्र
तेरा ज़िक्र किया तो पता लगा,
कितना खूबसूरत है साथ तेरा।
पैगाम-ए-इश्क़ इस दिल को भाया बड़ा,
जब दिल से जुड़े रास्ते में,
हसकर खड़ा मिला वास्ता हमारा।।

तेरे ज़िक्र से मैं गुलाबी,
और चाल मेरी
दिल के मौसम में इतरा जाती है।
नज़रों में तू नवाबी,
और तेरे नाम का हर कतरा
मेरे जिस्म के अंतरा में ज़र्रा-ज़र्रा
मदिरा के नशे सी चढ़ जाती है।।

ख़्वाबों से ख़्यालों तक का सफर,
मुझे तेरे होने का एहसास दिला जाती है।
तुझे सोचने के बाद,
तुझे महसूस करने की बात,
मेरे होठों तक सिहरण दे जाती है।।

इश्क़ है तुझसे और बताऊँ कितना!
तेरे ज़िक्र भर से
दिल की रफ्तार बदलती है,
ये समझाऊं कितना!
तुझे मालूम नहीं
तुझसे मोहब्बत कितनी है,
ऐसे ही महफ़िलों के दीवानियों के भीड़ में
कलम की दिवानी मशहूर नहीं है।।

ना बदनाम हूँ, ना हैरान हूँ
बस पता है इतना....
तेरे नाम के ज़िक्र से शुरु हुई पैगाम मैं,
और तेरे ज़िक्र पर ही खत्म हूँ।।

© KALAMKIDIWANI