...

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मुबारक़ हो
कितना वक़्त गुज़र गया
न तुम्हारा कोई कॉल आया न मैसेज
अब तो शायद तुम्हें याद भी नहीं
भूल गए हो तुम मुझे

तुम्हें पता भी है ?
कैसे तुम बिन रही हूँ मैं
कभी चाँद से तुम्हारी बातें करना
कभी तुम्हारी याद में ग़ज़ल लिखना
कभी तुम्हारे लौट आने के ख़्वाब देखना

उफ्फ.! मैं भी कितनी पागल हूँ न..
ये भी कोई वक़्त है शिक़ायत करने का
चलो छोड़ो ये सब
वैसे तुम्हें नया हमसफ़र मुबारक हो