...

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अवसाद
ख़्वाब नहीं है मेरे पास, जान भी शेष नहीं
है तो एक कोलाहल से भरा सूनापन
बेआवाज़ चीखें, घुटन से भरी बोझिल सांसें
एक धधकता ज्वालामुखी
जिसका लावा सैलाब बनकर
आंखों के रास्ते बह जाता है
और बहा ले जाता है अपने साथ
मेरा सब कुछ और मुझे भी
बची रह जाती है सुलगती राख़
और मैं फिर चल देती हूं रोज़
यहां-वहां, इधर-उधर, बेवजह
खींचते हुए बमुश्किल अपनी ही ज़िंदा लाश
© agypsysoul

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