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नज्म ए जिंदगी
बदलते मौसम में,
तुम छाँव बन जाओ ना।
कभी जो बहे अँखियाँ,
तुम कांधा बन जाओ ना।
घेरी उलझनों में,
तुम माथे का बोसा बन आओ ना।
अनकही बातें मेरी,
तुम लफ्ज़ ए मोती बन जाओ ना।
ठहरी लकीरों में,
तुम स्पर्श ए एहसास बन जाओ ना।
नज़्म ए जिंदगी,
तुम स्याह कोरा कागज़ महका जाओ ना।।
© सांवली (Reena)
तुम छाँव बन जाओ ना।
कभी जो बहे अँखियाँ,
तुम कांधा बन जाओ ना।
घेरी उलझनों में,
तुम माथे का बोसा बन आओ ना।
अनकही बातें मेरी,
तुम लफ्ज़ ए मोती बन जाओ ना।
ठहरी लकीरों में,
तुम स्पर्श ए एहसास बन जाओ ना।
नज़्म ए जिंदगी,
तुम स्याह कोरा कागज़ महका जाओ ना।।
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