...

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हम फिर गुमसुम से हो गये
गुमसुम सा रहता था मैं
अपने ही विचारों की दुनिया में
फिर मिले कुछ अच्छे दोस्त ऐसे
पहले कभी ना मिले थे वैसे
बयान ना हो ऐसा रिश्ता बन चूका था
ख़ुशी का वो एक जरिया सा बन चूका था
लेकिन फिर कुछ हुआ ऐसा
पहले कभी ना हुआ था जैसा
जो सोचा ना था वो बदलाव सा आ गया
ना रहा अब कुछ पहले जैसा
वो एहसास सा दे गया
बिना कुछ बताए ही वो अंजान से हो गए
बिना कुछ बोले ही वो अलविदा जो कह गये
और फिर होना ही क्या था
हम फिर गुमसुम से हो गए
हम फिर गुमसुम से हो गए 🙂

© Rohit Lokhande