...

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उसके कंगन
उसके कंगन की खनखन पे, रच दूँ एक प्यारा सा छंद
उसके कोमल हृदय पे साथी, वारूँ अपना तन और मन

लहँगा गुलाबी चुनर गुलाबी, माथे पर झूमर है सजाया
उसके पाँव की झाँझर ने है, मेरे दिल का चैन चुराया

चूड़ी बिंदी लाली झुमका, गले में पहना है हार नवरतन
उसकी कमर के कमरबन्द पे, हार गया मैं अपना दिल

बेक़रार दिल पे मेरे वो, जादू अपने हुस्न का चलाती रही
उसे देख मदहोश हम हो गए, वो फक़त मुस्कराती रही

हर्फ़ से हर्फ़ जुड़ते गए, रात भर में पूरी ग़ज़ल लिख गयी
मन में कंगन को उसके घुमाते रहे,खुद को यूँ रिझाते रहे
© ऊषा 'रिमझिम'