...

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आंसूनी सी?
ये जो कहती थी तेरी बाते जो कभी मुझ तक पहुंची नही मुझ तक
खौंफ था क्या मेरा?
या इरादे था किसी और
को उलझाने का मीठी बातों में ?
कहना ही तो था चले जाओ मेरी नज़रों से
चले जाता बिना कुछ कहे तेरी नज़रों से

इत्तेफ़ाक कितने अजीब से होते है न ?
लोग कहते हैं दूर हो तुम मुझ से

झूठे है सब, यहां भी तो दिखती हो तुम करीब मेरे आखों के नीचे
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