...

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उस बात में कोई बात तो हो....
उस बात में कोई बात तो हो,
जिस बात पे लाखो बात बनी !
हमने कितनी सुबह दे दी,
तब एक तुम्हारी रात बनी !!

तुमने हमको पत्थर समझा,
चलो अच्छा हैं कुछ तो समझा !
जब नाम मेरा तेरे होंठों पे आया,
बस वो ही मेरी सौगात बनी !!
हमने कितनी सुबह दे दी,
तब एक तुम्हारी रात बनी....

निगाहें उठाकर झुका क्यूँ रही हो,
चेहरे से जुल्फों को हटा क्यूँ रही हो !
तुमने जो ज़मी पर फेरी उंगलिया,
तब जाके ये तमाम क़ायनात बनी !!
हमने कितनी सुबह दे दी,
तब एक तुम्हारी रात बनी....

उस मंज़िल का राही हूँ मैं,
जिस मंज़िल की कोई राह नहीं !
जब हाथ तेरा मेरे हाथों में आया,
तब जाके हसीन ये हयात बनी !!
हमने कितनी सुबह दे दी,
तब एक तुम्हारी रात बनी....

उस बात में कोई बात तो हो,
जिस बात पे लाखो बात बनी !
हमने कितनी सुबह दे दी,
तब एक तुम्हारी रात बनी....
तब एक तुम्हारी रात बनी....

© विकास शर्मा