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आलसी आदमी 🏃
आलसी आदमी
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मैं क्यूं टूटा हूं
क्यों खुद से रूठा हूं
संभाल नहीं पा रहा मैं खुद को
क्यों दुनिया की सोचे बैठा हूं
हाथों में ढूंढता हूं नसीब को
मेहनत से मुकरके बैठा हूं
सोचता हूं कोई आसान रास्ता मिल जाए
कांटों पर चलने से डरता हूं
हर लम्हा खोया रहता हूं सपनों में
हकीकत से आंखें मिचे बैठा हूं
क्या तुम मेरा साथ दोगे
किसी के इंतजार में बैठा हूं
दुनिया क्या कहेगी मुझको
घर में डर कर बैठा हूं
हां मैं सही हूं
दूसरो की महफिलों में बैठा हूं
अपनी तो कट जाएगी ऐसे ही
उधारी पैसो को दबा कर बैठा हूं
लोग कहते हैं मुझे आलसी
अपना चेहरा छुपा कर बैठा हूं

- नरेन्द्र कुमार तोमर
© Narendra Kumar Tomar