पीछे मुड़ कर...
पीछे मुड़ कर देख रही हूँ
अपने खुशनुमा चेहरे को
जाने कहाँ गए हँसते हुए वो लम्हे
जो छू गए हैं आज दिल को।।
न वो मुस्कान है, न है वो खुशी
न कोई आशा है, न तमन्ना जीने की
आँसू आज दर्द बनकर उभर रहे हैं
शायद दिल-ओ-दिमाग को संभाल रहे हैं
अक्सर घिरी रहती हूं सबसे...
अपने खुशनुमा चेहरे को
जाने कहाँ गए हँसते हुए वो लम्हे
जो छू गए हैं आज दिल को।।
न वो मुस्कान है, न है वो खुशी
न कोई आशा है, न तमन्ना जीने की
आँसू आज दर्द बनकर उभर रहे हैं
शायद दिल-ओ-दिमाग को संभाल रहे हैं
अक्सर घिरी रहती हूं सबसे...