...

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"रंजीनी"
किसी लम्हा तेरी नज़रों से,
नज़रें मिलाऊँगा में,
तेरे चेहरे के नूर में,
खो जाऊंगा में,

कहीं किसी रोज़,
तेरा दीदार कर सकू,
तेरे होठों से,
अपना नाम सुन सकू,
इस कदर खुद को,
काबिल बनाऊंगा में,
किसी लम्हा तेरी नज़रों से,
नज़रेँ मिलाऊँगा में,

तेरी सादगी की चादर ओढ़े,
तुझे एक अरसा हो चला अब,
मेरी ख्वाईशो के तकिये पर,
सुलाऊँगा तुझे,
कभी किसी लम्हा तेरी नज़रो से,
नज़रेँ मिलऊंगा में,

तेरी हंसी के आईने में,
मेरा चेहरा धुंदला सा नज़र आता है,
जो अगर मुमकिन हो सके कभी,
तो खुदको तेरी नज़रों में,
देखना चाउंगा में,
कभी किसी रोज़,
तेरी नज़रो से,
नज़रेँ मिलऊँगा में,

मेरे अतीत का एहम,
हिस्सा है तू,
मेरे आज में,
एक किस्सा है तू,
पर कर सकून तुझे ज़िंदा,
मेरे कल में,
ऐसी दुआ मांगना चाहूंगा में,
कभी किसी रोज़,
तेरी नज़रों से,
नज़रेन मिलाऊँगा में,

मेरे सपनो के,
दायरे से तू दूर हैँ,
मेरी इच्छाओ में तू मौजूद है,
कहीं किसी रोज़ अपने,
मस्तक की लकीर बनाऊंगा तुझे,
कभी किसी रोज़,
तेरी नज़रों से,
नज़रेँ मिलाऊँगा में,

मुझे अकेला चलना पसंद है,
मगर किसी सफर,
में तेरा साथ चाहूंगा में,
यूँही नहीं तू आस है,
जिसे ज़िंदा रखना चाहूंगा में,
कहीं किसी लम्हा तेरी नज़रों से,
नज़रेँ मिलाऊँगा में,












© Sarang Kapoor