...

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वो कुछ गुलाब की पंखुड़ियाॅ


आज भी तुम्हारी दी गुलाब की कुछ पंखुड़िया मेरी डायरी में,
हमारी कहानियाॅ कहती हैं,
कभी गुफ्तगू करती हैं वो हमारे इश्क की,
तो कभी इतराती हैं खुद पे,
तुझसे मोहब्बत करने की गूरूर में
बेबाक बेफिकर दुनिया की जुल्म से,
अक्सर इज़हार-ए-मोहब्बत करती हैं वो,
कभी छू लू जो उन बेजान पंखुड़ियों को तो
मानो जैसे एक अरसे से सोयी जिन्दगी जाग उठती हैं,
खिलखिलाती मुस्कुराती शरमा कर फ़िसल जाती है हाथों से,
ना जाने कितने ऐहसास लिए वो आज भी तेरी प्यार से सवरी है,
तेरा नाम जैसे उसकी खुशबू
और तेरी बातें जैसे थमी हुई सांसे,
पल पल बिखरती है तेरी पनाहों में,
वो कुछ, तुम्हारी दी गुलाब की पंखुड़ियाॅ मेरी डायरी में....
जो हमारी कहनियाँ कहती हैं ।।
©स्तुति प्रेरणा

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