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आत्मसाक्षात्कार
ना समझ स्वयं को विवश
ब्रह्माण्ड तुझमें समाया हुआ
अमूल्य अनुभूति हुई संघर्षों से
तेरा तुझमें विस्तार हुआ
निखरा है चुनौतियों से
अस्तित्व जो उजागर हुआ
चलता जा कर्मपथ पर
अवसादों से लड़ता जा
नहीं ज्ञात तुझे क्षमता अपनी
सर्वस्व तुझमें, अनुभूति जगा
मनोदशा ना जाने कोई
अपना साथी स्वयं बन जा
संवेदनाओं को बना ढाल
आविष्कार स्वयं का कर जा
समाहित तुझमें सर्वस्व
स्वयं को ही माध्यम बना
अनुभूतियाँ ही करवाती
आत्मसाक्षत्कार स्वयं का
चरित्र निर्माण होगा नया
हो तुम संसार के लिए प्रेरणा
© विनीता पुंढीर
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