...

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"आखरी ख्वाहिश"
सुनो,
अब जब बिछड़ ही गयी हो तो मेरी आखरी ख्वाहिश भी सुनती जाओ।
इन आँखों का काजल कभी बिखरने मत देना।
इन आँखों में कभी मैं रहा करता था।
इन चेहरे को कभी फीका मत पड़ने देना।
इन्हे मैं कभी चाँद कहा करता था।
ये हसी जो कभी मुझे तुझ तक खींच लायी थी।
इन हसी को कभी उदास मत करना।
ये लड़कपन तुम्हारी जो मुझे सबसे अज़ीज़ थी।
इन लड़कपन मे कभी समझदारी मत भरना।
वो रास्तें जिन पर हम साथ चला करते थे।
उन रास्तों पर कभी अकेले मत चलना।
ये होठ जिन पर मेरा नाम था कभी।
इन होठों से मेरा ज़िक्र मत करना।
ये पेशानी जिन्हे मैं दिन रात चूमता था।
इन पर कभी शिकन मत पड़ने देना।
और, मेरी आखरी ख्वाहिश मेरी आखरी आरज़ू।
मुझे याद कर कभी ज़ार ज़ार मत होना।

© (✍)Roshan Rajveer