...

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"मुकाम"
सब्र से उलझे एहसास मेरे,
तेरी पनाह में "चैन-ओ-गुमान" आयेगा।

जिसमें तेरा पैग़ाम हो शामिल,
उस ख़त के "लफ़्ज़-ओ-सुकून" में तेरा नाम आयेगा।

हौसलों की कश्तियां डावांडोल ही सही,
तेरी "लहर-ओ-अपन" के साथ मेरा अंजाम आयेगा।

मैं रुककर इन्तज़ार करुंगी तब भी तेरा,
मेरी आखिरी "सुबक-ओ-घुटन" का जब मुकाम आयेगा।
© प्रज्ञा वाणी