...

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देख रहीं महबुब हमारी
देख रहीं महबुब हमारी
नज़रें, नजरों को बांध कर
कर रही है कुछ सवाले
बहुत कुछ जान कर
देख रही महबुब,,,,,

फासले है नहीं
चेहरे व जुवान पर
सीधे सीधे चुनौती दे रही थी
ज्वालामुखी आह्वान पर
देख रही महबुब,,,,,

पता नहीं क्या छुपा रही थी
अंदर दिल यान पर
हाक रही थी जज्बातें
सहमें सहमें बेजुबान पर
देख रही महबुब,,,,,

सीधे सीधे बात नहीं करती थी
टाल रही थी हर कुछ राम पर
गजब लिए हुएं थी इमोशन
चेहरे मुस्कान पर
देख रही महबुब,,,,,

जुवान चला रही थी
नयन भांग रही थी जान पर
वह सीधी साधी दिखती थी
लेकिन हैं नहीं वह सिधी खतरनाक है जंग ऐ मैदान पर
देख रही महबुब,,,,,

संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar