स्त्री होकर जाना
घर के कोने- कोने में होती है समाई,
लेकिन उसका अपना कोई घर नहीं होता।
नौ महीने रखती है वो शिशु को अपने गर्भ में,
लेकिन शिशु के नाम के आगे उसका नाम नहीं होता।
सबके लिए कर देती है वो रात- दिन एक,
लेकिन ख़ुद के लिए फ़ुर्सत का एक लम्हा नहीं होता।
लाज सभ्यता का घूँघट ओढ़ रहती है मर्यादा में,
फिर भी पुरुष की...
लेकिन उसका अपना कोई घर नहीं होता।
नौ महीने रखती है वो शिशु को अपने गर्भ में,
लेकिन शिशु के नाम के आगे उसका नाम नहीं होता।
सबके लिए कर देती है वो रात- दिन एक,
लेकिन ख़ुद के लिए फ़ुर्सत का एक लम्हा नहीं होता।
लाज सभ्यता का घूँघट ओढ़ रहती है मर्यादा में,
फिर भी पुरुष की...