...

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रूठे साजन
रुठे थे कभी ,लौट आने लगे है,,
परिंदे तो फिर घर बनाने लगे हैं,,

तसल्ली से तोड़ा है यूँ इश्क़ ने जो,
मुझे देख नज़रें झुकाने लगे हैं,,

वो दीमक के मानिंद खा के मुझे ही,,
मुखोटा लगा फ़िर से खाने लगे हैं,,

बुझी है कभी प्यास पैसों की उन की,?
फ़क़त इसलिए पास आने लगे हैं,,

वो ज़िल्लत की गठरी मेरे सर पे मारे,,
मुझे गलतियां अब सुनाने लगे हैं,,
(पशेमाँ-शर्मिंदगी)

*विकास जैन व्याकुल*

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