...

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हसीन ज़हर!
जल रहें हैं अंदरूनी ज़ख़्म,
दर्द का उसपे बहुत है असर,

मुस्कुराए हुए इक अरसा हुआ,
झेला है उसने इश्क का कहर,

रोशनी तक उसकी फ़ना हुई,
अब होगी कैसे जिंदगी बसर,

सांसें रूक रहीं मगर मरा नहीं,
दिया गया है उसे हसीन ज़हर,

दग़ा दे गया वही शख़्स ख़ास,
जिस पे फ़िदा थीं शामों- सहर,

वही तो है दर्द, वही है दवा भी,
ढूंढे अब भी उसी ख़ास को नज़र,

वो टूटा तारा उतरा है फलक से,
ऐ शब, आज ज़रा आहिस्ता गुज़र!

—Vijay Kumar
© Truly Chambyal