तिल तिल कर मर रहीं नारी
समाज़ के बनाए रूढ़ि सोच विचारो एवं नियम,
कानून में बंध कर,तिल तिल कर मर रही है नारी!
कहने को तो जगत जननी,नारी शक्ती, नौ स्वरुप,
पर आज भी अपने अधिकारों से वंचित है नारी!
स्वतंत्र है केवल समाज़ की नज़रो में लेकिन आज
भी क़ैद है जंजीरो में कहीं सहमी सी अबला नारी!
सर्वस्व जीवन अर्पण कर देती परिवार के लिए,
फिर भी सवालों के कटघड़े में खड़ा है नारी!
सब त्याग...
कानून में बंध कर,तिल तिल कर मर रही है नारी!
कहने को तो जगत जननी,नारी शक्ती, नौ स्वरुप,
पर आज भी अपने अधिकारों से वंचित है नारी!
स्वतंत्र है केवल समाज़ की नज़रो में लेकिन आज
भी क़ैद है जंजीरो में कहीं सहमी सी अबला नारी!
सर्वस्व जीवन अर्पण कर देती परिवार के लिए,
फिर भी सवालों के कटघड़े में खड़ा है नारी!
सब त्याग...