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पर्दा
पर्दा
परदा...... जिससे जीवित है दुनियादारी
वो परदा जिसके पीछे छिपा दिये स्त्री के सपने
जो भीगा पड़ा है उसके आँसुओं से
जिसकी ओट में काट दिये गये उसके पँख
हाँ बस जिंदा रखी गई सभ्यता और संस्कारों की पोथियाँ
काश कहीं वो परदा पुरुष की नज़रों के लिए भी होता
परदा शर्म और सम्मान का
इज़ाज़त ना होती उसको यूँ बेपर्दा झाँकने...