...

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चलते रहो, मंज़िल दूर नहीं
चलते रहो, मंज़िल दूर नहीं,
ये रास्ते, ये डगर, तेरे लिए हैं सही।
ठोकरें लगें, गिरो, फिर उठो,
ये ज़िंदगी, ये सफ़र, यूँ ही कटता नहीं।

थक कर बैठो न कभी, हार मानो न,
ये मुश्किलें, ये पल, बस यूँ ही टलते नहीं।
आँसू पोंछो, मुस्कुराओ, आगे बढ़ो,
ये सपने, ये ख्वाहिशें, यूँ ही मिलते नहीं।

चलते रहो, चलते रहो, रुकना नहीं,
ये वक़्त, ये लम्हा, फिर लौट कर आता नहीं।
अपने हौसलों को, अपनी उम्मीदों को, थामे रखो,
ये मंज़िल, ये जीत, यूँ ही मिल जाती नहीं।

चलते रहो, ठहरो नहीं,
मंज़िल खुद ब खुद पास आ जाएगी,
हर मुश्किल राह में,
एक नई राह निकल आएगी।

छोटे से कदम बड़े बन जाएंगे,
सपनों के सागर में जब तुम उतर जाओगे,
तुम्हारे जज़्बे को देख,
तारे भी राह दिखाने आएंगे।

रास्ते चाहे कितने भी कठिन हों,
हिम्मत के दीप जलाते रहो,
हर अंधेरी रात के बाद,
सवेरा जरूर आएगा, चलते रहो।
© नि:शब्द