...

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बरखा ⛈️🌪️
सनन–सनन चलती पुरवइया ,
घनन–घनन कर आए मेघ।
करें तरु सब ताता–थैया,
देखो ज़रा पवन का वेग ।।

चमक–चमक कर चंचल बिजुरी,
दमक – दमक दमकाती है।
धरा की तपती आत्मा देखो ,
राग मल्हारी गाती है ।।

नैन पे नैन तकें हैं गगन को,
आश का कौतूहल भारी।
बांह फैलाए स्वागत को,
मचल रही फसलें सारी।

चमकत नैन ते गर्जत बैन,
चहुं–दिस हो रही है चर्चा।
आई तू सब जन भए धन्य,
कुछ दिन तो रुक जा री बरखा।।
⛈️⛈️🌪️⛈️⛈️
–ध्रुव
© Dhruv