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मानव धर्म

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जीवन रणक्षेत्र है, समर अभी शेष है ।
उम्र ये विशेष है, मद मोह लोभ घृणा,
ईर्ष्या और द्वेष है ।
स्वयं के अंदर ही शत्रुओं का समावेश है ।
विवेक का सम्बल हो, स्वयं का आत्मबल हो,
सत्यपथ निष्ठा हो, विजय की आकांक्षा हो ।
मानवता मरे नहीं, धर्म है यही सही ।
प्रेम हो सद्भाव हो, आपस में न दुराव हो ।
संकल्प यही लेना है, दृढप्रतिज्ञ बनना है ।
विश्व के मानचित्र पर, भारत अपना विशेष है ।
मानवधर्म निभाना है, गौरव बढाना है ।
जय हिन्द, वन्दे मातरम् ।।
© Nand Gopal Agnihotri