...

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जुदा
आज बैठें फिर खुद की महफ़िल में,
कुछ बातें पुरानी यादें वापस लायीं,
कुछ पल जो हसीन थे,
उनकी बातों को सोचकर मुस्कुराये,
उसके साथ ही गम के हसीन लम्हें भी साथ आये।

याद आये वो शख़्स भी जो जुदा हुआ मुझसे था,
यकीं मानों मेरा मैं ही एक नंबर का बेवकूफ़ था,
कुछ पाकर खोने का गम वैसा ही था,
जैसे हाथों में जाम तो थी,
पर होंठों तक पहुँचने का रास्ता अभी काफी दूर था।

वैसे मैं शराब हाथ तक नहीं लगाता,
ना जानें क्यों मुझे उसके लिए,
दिन में झूमना भी मंजूर था,
रास्तें खो जाना अच्छा लगा,
दिन में चौराहें पर बैठकर मैं,
ना जाने कौनसे तारे देखता था।

हर चेहरा दिखता उसके जैसा,
या खूबसूरत हर चेहरा उसका था,
मेरी आँखों को ना जानें बीमारी कोनसी लगी,
मेरा यार अब मुझें चाँद में भी दिखता था।

हर वक़्त इंतज़ार करता लौट उसके आने की,
मैनें घर की सारी घड़ियाँ उस वक़्त पर ठहरायी थीं,
जब छोड़ कर जा रहा था शख्स वो मुझें,
मैनें जिस्म से रूह गवाई थीं।

मुस्कुराहट होंठों पे रख इंतज़ार करता उसका मैं,
शायद कोई राहगीर रास्ता भूल कर दरवाजे पर दस्तक दे,
पूछ तो लू उसको मेरे रूह का हाल,
कि कब घर लौटने का इरादा हैं,
ज़िंदगी भर छोड़ कर यू मुझें,
मेरी गलतियों की और कितनी बड़ी सज़ा देना हैं।

© shivika chaudhary