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बस अब बहुत हुआ
तू उठ, तू उसको फूँक दे,
जिसने तेरा दामन छुआ
अपनी यही परम्परा,
रावण सदा दहन हुआ,
तू अश्रू-अश्रू ना बहा,
तू रक्त की नदी बहा,
तू उठ, तू उसको फूँक दे,
जिसने तेरा दामन छुआ।
किसी से ना पुकार कर,
प्रालाप ना, चीत्कार कर
खदग उठा, प्रहार कर,
तू बार-बार, वार कर
तू काट कर बिखेर दे,
हर एक पापी भेड़िया,
तू उठ, तू उसको फूँक दे,
जिसने तेरा दामन छुआ।
ये गीदड़ों के झुंड हैं,
तू सिंहनी बन दहाड़ दे
तू नोंच-नोंच फेंक दे,
इन्हें तू चीर-फाड़ देेे
सहम नहीं, रहम नहीं,
सहन नहीं, घुटन नहीं
के अब बस बहुत हुआ,
तू उठ, तू उसको फूंक दे,
जिसने तेरा दामन छुआ।।
-भूषण
जिसने तेरा दामन छुआ
अपनी यही परम्परा,
रावण सदा दहन हुआ,
तू अश्रू-अश्रू ना बहा,
तू रक्त की नदी बहा,
तू उठ, तू उसको फूँक दे,
जिसने तेरा दामन छुआ।
किसी से ना पुकार कर,
प्रालाप ना, चीत्कार कर
खदग उठा, प्रहार कर,
तू बार-बार, वार कर
तू काट कर बिखेर दे,
हर एक पापी भेड़िया,
तू उठ, तू उसको फूँक दे,
जिसने तेरा दामन छुआ।
ये गीदड़ों के झुंड हैं,
तू सिंहनी बन दहाड़ दे
तू नोंच-नोंच फेंक दे,
इन्हें तू चीर-फाड़ देेे
सहम नहीं, रहम नहीं,
सहन नहीं, घुटन नहीं
के अब बस बहुत हुआ,
तू उठ, तू उसको फूंक दे,
जिसने तेरा दामन छुआ।।
-भूषण
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