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संध्या
खड़ा मैं, देख रहा सूर्य को ढलता,
खड़ा मैं, सोच रहा ,मेरे जीवन की भी यही अवस्था,
चमक रहा था मैं दोपहर में, पल भर में हो गई संध्या।
खड़ा खड़ा मैं सोच रहा, अपने मन में खोद रहा, नदी को कविता से जोड़ रहा।
कभी मेरा हुआ उदय था, निर्मल नदी सा,
सफर शुरू हुवा , नदी के गमन का,
ऊर्जा चरम पर थी, नदी में उफान था,
मुझ जैसा कोई नहीं, नदी में अभिमान था।
लगा सफर है लंबा, लंबी जल की धारा हु मैं,
हो गई है संध्या, रह गया बस नाला हु मैं।
सफर का अंत हो रहा,नदी को समंदर दिख रहा,
ऐ! छोटी सी नदी बड़ा अभिमान किया तूने,
अब शून्यता में शून्य होना होगा।
खड़ा खड़ा मैं सोच रहा,अब होगी रात,
अब मुझे चलना होगा,
अब मुझे चलना होगा।
do follow for more 😁
#kuldeep
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#kuldeepsaharan
# kuldeep_saharan
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written by: kuldeep Saharan
written on: 30 june 2021
© Kuldeep_Saharan
खड़ा मैं, सोच रहा ,मेरे जीवन की भी यही अवस्था,
चमक रहा था मैं दोपहर में, पल भर में हो गई संध्या।
खड़ा खड़ा मैं सोच रहा, अपने मन में खोद रहा, नदी को कविता से जोड़ रहा।
कभी मेरा हुआ उदय था, निर्मल नदी सा,
सफर शुरू हुवा , नदी के गमन का,
ऊर्जा चरम पर थी, नदी में उफान था,
मुझ जैसा कोई नहीं, नदी में अभिमान था।
लगा सफर है लंबा, लंबी जल की धारा हु मैं,
हो गई है संध्या, रह गया बस नाला हु मैं।
सफर का अंत हो रहा,नदी को समंदर दिख रहा,
ऐ! छोटी सी नदी बड़ा अभिमान किया तूने,
अब शून्यता में शून्य होना होगा।
खड़ा खड़ा मैं सोच रहा,अब होगी रात,
अब मुझे चलना होगा,
अब मुझे चलना होगा।
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