संध्या
खड़ा मैं, देख रहा सूर्य को ढलता,
खड़ा मैं, सोच रहा ,मेरे जीवन की भी यही अवस्था,
चमक रहा था मैं दोपहर में, पल भर में हो गई संध्या।
खड़ा खड़ा मैं सोच रहा, अपने मन में खोद रहा, नदी को कविता से जोड़ रहा।
कभी मेरा हुआ उदय था, निर्मल नदी सा,
सफर शुरू हुवा , नदी के गमन का,
ऊर्जा...
खड़ा मैं, सोच रहा ,मेरे जीवन की भी यही अवस्था,
चमक रहा था मैं दोपहर में, पल भर में हो गई संध्या।
खड़ा खड़ा मैं सोच रहा, अपने मन में खोद रहा, नदी को कविता से जोड़ रहा।
कभी मेरा हुआ उदय था, निर्मल नदी सा,
सफर शुरू हुवा , नदी के गमन का,
ऊर्जा...